New Delhi. ओडिशा हाईकोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) द्वारा निकाले गए एक कर्मचारी को मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह मामला 1992 से SBI के उमरकोट ब्रांच में कार्यरत एक मैसेंजर कर्मचारी से जुड़ा है, जिसे एक मृत खाताधारक के खाते से अवैध रूप से पैसा निकलवाने के आरोप में टर्मिनेट कर दिया गया था।
पूरा मामला:
कार्यकर्ता को 26 मार्च, 1992 को एसबीआई की उमरकोट शाखा में मैसेंजर के रूप में नियुक्त किया गया था। उसी ब्रांच में स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती राधा गौडुनी का एक सेविंग खाता था, जिसमें राज्य सरकार से उनकी पेंशन जमा होती थी।
खाते में लंबे समय तक कोई लेन-देन नहीं हुआ, जिससे वह डॉर्मेंट (निष्क्रिय) हो गया। इसी बीच 3 अक्टूबर 2000 को ₹20,000 की निकासी की गई। निकासी पर्ची पर बाएं हाथ का अंगूठा निशान (LTI) था। बाद में यह खुलासा हुआ कि श्रीमती राधा गौडुनी की काफी पहले मृत्यु हो चुकी थी और यह पैसा उनके पोते द्वारा निकाला गया था।
इस मामले में बैंक के जूनियर मैनेजर, खाता खोलने वाले क्लर्क, और कैशियर समेत मैसेंजर पर भी कार्रवाई की गई। आरोप था कि मैसेंजर ने ही निकासी पर्ची आगे बढ़ाई और कहा कि खाताधारक ब्रांच में भीड़ के कारण काउंटर तक नहीं आ पा रही हैं।
हालाँकि, कर्मचारी ने पैसा वापस लेकर खाते में जमा कर दिया था इससे पहले कि विभागीय जांच शुरू हुई। फिर भी, जांच अधिकारी ने उन्हें गंभीर कदाचार (Gross Misconduct) का दोषी पाया और उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप:
अब, ओडिशा हाईकोर्ट ने इस मामले में कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया है और बैंक को उचित मुआवजा देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने माना कि कर्मचारी की गलती इतनी गंभीर नहीं थी कि उसे नौकरी से निकाल दिया जाए, खासकर तब जब उसने नुकसान की भरपाई कर दी थी।