
पिछले कुछ महीनों से लाभकारी दामों के साथ-साथ मक्का की बढ़ती खपत के बावजूद 2019-20 के सत्र के दौरान अभी तक मक्का के रकबे में इजाफा नहीं
हुआ है। मौजूदा खरीफ सीजन में दिख रहे शुरुआती रुख से भी यही संकेत मिलता है। खरीफ बुआई के संबंध में 14 जून की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार इस
सप्ताह के दौरान देश में मक्का की फसल के तहत क्षेत्र केवल 3,00,000 हेक्टेयर रहा जो 2018 में 4,50,000 हेक्टेयर की तुलना में 33 प्रतिशत कम
है। धान, दलहन, तिलहन और गन्ने जैसी अन्य खरीफ फसलों की बुआई के मुकाबले यह सबसे कम है। चूंकि पोल्ट्री क्षेत्र में इसकी बढ़ती मांग के अलावा फसल क्षति के बाद आपूर्ति में आई कमी के कारण मक्का के घरेलू दाम दो-तीन महीने पहले 2,300 रुपये प्रति क्विंटल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए थे इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि मांग में तेजी और बाजार की संभावनाओं को देखते हुए किसानों द्वारा मक्का के रकबे में तेजी की जाएगी। पिछले साल केंद्र ने किसानों के लाभ के लिए 2018-19 में खरीफ की मक्का के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 275 रुपये प्रति क्विंटल तक या 20 प्रतिशत का इजाफा कर दिया था। इस तरह दाम 1,425 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 1,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे। उत्तर प्रदेश योजना आयोग के पूर्व सदस्य और किसानों के हित में काम करने वाले संगठन – किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पंवार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि किसानों द्वारा अब भी मक्का को उद्योग के कच्चे माल की फसल के रूप में समझा जाता है जबकि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य धान और दलहन सहित खरीफ की अन्य फसलों में सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धी है। इससे किसानों को मुख्य फसल के रूप में इसकी खेती करने का ‘यादा प्रोत्साहन नहीं मिलता है।
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