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पिंजरे का शेर बनता जा रहा देश का आरटीआई कानून

मौजूदा दौर में भ्रष्टाचार के खिलाफ कमजोर पड़ती कार्यकर्ताओं की लड़ाई, बार—बार खरीज होती आरटीआई ने इस कानून का मजाक बना दिया, देश में 100 से ज्यादा आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है, और सैंकड़ों पर हमले जारी हैं, आरटीआई अधिकार के भविष्य पर खतरा, बार—बार आरटीआई को खारीज करने का ग्राफ पिछले पांच सालों से चरम पर है, राजस्थान में अब तक आरटीआई कार्यकर्ताओं पर 17 से ज्यादा हमले हुए हैं, जिनमें दो कार्यकर्ताओं की जान भी गई हैं। इसके अलावा 15 से ज्यादा को मारपीट या घमकी देकर डराया गया है।

जयपुर. सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम के लागू होने के 20 वर्ष पूरे होने पर जहां पारदर्शिता और जवाबदेही की बातें हो रही हैं, वहीं इस कानून के जरिए भ्रष्टाचार उजागर करने वाले हजारों कार्यकर्ताओं की जान पर बनी है। देश में आरटीआइ का कानून अब चिड़िया घर का शेर बनता जा रहा है। आरटीआई कार्यकर्ता और वी द पीपल की फाउंडर की मंजू सुराणा ने कमजोर होते इस कानून के बारे में चौकाने वाले खुलासे किए हैं। सुराणा ने कॉरपोरेट पोस्ट को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बताया कि देश में अब तक 100 से अधिक आरटीआई कार्यकताओं की हत्या हो चुकी है, जबकि सैकड़ों पर हमले और धमकियां जारी हैं। आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या के पीछे अक्सर वही कारण होते हैं, वे किसी सच को उजागर करने के करीब पहुंच जाते हैं। लेकिन जांच एजेंसियां या मीडिया, कभी-कभी ध्यान भटका देती हैं।

 

एक दिल को हिला देने वाला उदाहरण…

आरटीआई कार्यकताओं का दर्द इस मामले से समझिए, ये प्रकरण पुणे जिले के संदीप शेट्टी के भाई सत्यनारायण शेट्टी की हत्या का था, जिनकी याद में अब भी उनका परिवार न्याय की उम्मीद लगाए बैठा है। सत्यनारायण शेट्टी को स्थानीय निकायों और पुलिस तंत्र में भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी। 2010 में उन्हें गोली मार दी गई थी। केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई, लेकिन आरोपियों को अब तक सजा नहीं मिल सकी है। सत्यनारायण के भाई संदीप शेट्टी ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहा कि “मेरे भाई के हत्यारे कई बार जेल गए, लेकिन जमानत पर बाहर आकर सबूत मिटाने में जुट गए। अगर न्यायपालिका और एजेंसियां समय पर कार्रवाई करतीं, तो यह हाल न होता। इसी तरह के दर्जनों मामले फाइलों धूल चाट रहे हैं।

 

भ्रष्टाचार से लड़ना, समाज की सामूहिक जिम्मेदारी….

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआइ) के अनुसार, भारत में आरटीआइ एक्टिविस्टों पर हमले के सैकड़ों मामले दर्ज हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक 100 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। सुराणा ने बताया कि वे खुद भी दो बड़े हादसों से बची हैं, लेकिन फिर भी वे सूचना के अधिकार को जनशक्ति का सबसे बड़ा माध्यम मानती हैं। उन्होंने कहा, भ्रष्टाचार से लड़ना किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है, यह समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।

 

विशेष सुरक्षा कानून बनाया जाए….

हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार The Silencing Act के अनुसार, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे राज्य हैं जहां सबसे अधिक हमले दर्ज किए गए। मानवाधिकार संगठनों ने सरकार से मांग की है कि आरटीआइ एक्टिविस्टों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाया जाए और ऐसे मामलों की जांच फास्ट-ट्रैक कोर्ट में हो। सुराणा का कहना कि सत्य उजागर करने वालों को संरक्षण देना, लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में पहला कदम है।

 

सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल

एक पूर्व आईपीएस अधिकारी का कहना है कि उन्होंने 50 से अधिक आरटीआई आवेदन दाखिल किए, जिनमें से अधिकांश को बार-बार खारिज कर दिया गया। इस विरोधाभास ने सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, सूचना का अधिकार सिर्फ जानकारी पाने का माध्यम नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ को मज़बूत करने का अधिकार है। लेकिन डेटा प्रोटेक्शन एक्ट जैसे नए कानूनों ने इस अधिकार के भविष्य पर भी खतरा पैदा कर दिया है। सुराणा ने बतयाा कि आरटीआई नागरिकों को सरकार से जवाब मांगने का औजार देता है, लेकिन अब इसका दुरुपयोग रोकने के नाम पर इसे कमजोर किया जा रहा है। कई राज्य सूचना आयोगों में रिक्त पदों के कारण लंबित मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे आवेदकों को महीनों तक जवाब नहीं मिल पाते है।

एक बड़ा सवाल

क्या मौजूदा सरकार इस कानून को कमजोर करना चाहती है, क्या देश में राष्ट्रीय सुरक्षा का पत्ता फेंक तानाशाही का दौर शुरू होने जा रहा है। आरटीआई जैसे कानून की हैसियत को कमजोर करना इस ओर इशारा कर रहा है।

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