नई दिल्ली. ऑल इंडिया बैंक ऑफ बड़ौदा ऑफिसर्स यूनियन ने देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाते हुए पुणे में बैंक के चीफ मैनेजर शिव शंकर मित्रा की आत्महत्या की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। यूनियन का कहना है कि यह सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि बैंक के भीतर प्रताड़ना, असहनीय दबाव और अपमानजनक कार्यसंस्कृति का परिणाम है, जो एक प्रकार की संस्थागत हत्या है।
घटना का विवरण:
17 जुलाई 2025 को श्री शिव शंकर मित्रा, जो बैंक ऑफ बड़ौदा की बारामती, पुणे शाखा में चीफ मैनेजर के पद पर कार्यरत थे, ने शाखा परिसर में ही आत्महत्या कर ली।
वे अपनी ड्यूटी के दौरान अत्यधिक मानसिक दबाव में थे और उन्होंने आत्महत्या से पूर्व छोड़े गए सुसाइड नोट में स्पष्ट रूप से लिखा कि असहनीय कार्यदबाव और अमानवीय वर्क कल्चर ने उन्हें यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया।
यूनियन का आरोप:
ऑल इंडिया बैंक ऑफ बड़ौदा ऑफिसर्स यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी याचिका में कहा है कि बैंक के शीर्ष नेतृत्व और मानव संसाधन विभाग की नीतियों ने एक विषाक्त, शोषणकारी और अपमानजनक कार्यसंस्कृति को जन्म दिया है। यूनियन ने आरोप लगाया कि:
• देर रात तक चलने वाली अपमानजनक भाषा से भरी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मीटिंग्स,
• बिना संसाधन और कर्मचारियों के असाध्य लक्ष्य थोपना,
• ट्रांसफर और अनुशासनात्मक कार्रवाई का डर,
• सार्वजनिक मंचों पर अधिकारियों का अपमान,
• और मानसिक उत्पीड़न जैसे हालातों ने बैंक को एक मनोवैज्ञानिक यातना केंद्र बना दिया है।
सुप्रीम कोर्ट से मांग:
यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट से निम्नलिखित कार्रवाई की मांग की है:
1. इस घटना को स्वतः संज्ञान में लेकर इस प्रकार की संस्थागत प्रताड़ना की गंभीर जांच की जाए।
2. न्यायिक जांच या स्वतंत्र उच्च स्तरीय जांच आयोग गठित किया जाए जो इस आत्महत्या के पीछे के कारणों की निष्पक्ष जांच करे।
3. बैंक के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ BNS की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया जाए।
4. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में मानसिक उत्पीड़न और विषाक्त वर्क कल्चर को रोकने के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए जाएं।
5. श्री मित्रा के परिवार को आर्थिक सहायता और सेवा से संबंधित अंतरिम राहत प्रदान की जाए, यह मानते हुए कि यह मौत ड्यूटी के दौरान संस्थागत जिम्मेदारी की चूक से हुई है।
अंतिम अपील:
बैंक अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि इस मामले को सार्वजनिक हित में तत्काल प्राथमिकता दी जाए, ताकि देश भर में कार्यरत हजारों बैंक अधिकारी, जो मानसिक रूप से पीड़ित हैं, संस्थागत शोषण से बच सकें और भविष्य में ऐसी संस्थागत हत्याओं की पुनरावृत्ति न हो।