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एफआईआर को लेकर ये हैं आपके अधिकार, इन नियमों को जानने के बाद नहीं खाएंगे धोखा


जयपुर. पुलिस के पास अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए हम अक्सर एफआईआर यानी फस्र्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट के बारे में सुनते हैं। हिंदी में एफआईआर को प्राथमिकी कहते हैं। अपराध के लिए पुलिस के पास कार्रवाई करने के लिए जो सूचना हम दर्ज कराते हैं उसे प्रथम सूचना रिपोर्ट या प्राथमिकी कहते हैं।
एफआईआर में पुलिस आरोपी को वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकती है। यह केवल संज्ञेय अपराधों जैसे हत्याए, रेप, चोरी, हमला आदि में दर्ज की जाती है। जबकि असंज्ञेय अपराध में पुलिस के पास किसी को वारंट के बिना गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं होता है। ऐसे केस को पहले ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के पास भेजना होता है। ऐसे ही मामलों में एनसीआर नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट दर्ज की जाती है। अगर आपका कोई सामान चोरी हो गया है तो एफआईआर दर्ज की जाएगी जबकि अगर वह खो गई है तो एनएसीआर दर्ज होगी। एफआईआर के बाद दोषी को सजा दिलाने के लिए पुलिस कार्रवाई शुरू करती है। आपकी चोरी हुई किसी चीज के दुरुपयोग होने का खतरा होता है ऐसे में आप अपराध में फंस सकते हैं जो आपने किया ही नहीं है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए एफआईआर जरूर दर्ज करानी चाहिए। घटना के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज करानी चाहिए।

देरी होने पर स्पष्ट कारण भी देना होगा- एफआईआर घटनास्थल से पास के थाने में दर्ज होनी चाहिए लेकिन आपातकाल की स्थिति में यह किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है। जिसे बाद में संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है। एफआईआर दर्ज कराने के लिए खुद भी जाने की जरुरत नहीं है इसके लिए घटना का चश्मदीद या कोई रिश्तेदार भी करा सकता है या फिर फोन कॉल या ई.मेल के आधार पर भी प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है। एफआईआर होने के बाद शिकायतकर्ता को इसकी मुफ्त में कॉपी जरूर लेनी चाहिए। एफआईआर में लिखा क्राइम नंबर आगे भविष्य में काम आ सकता है। एफआईआर की कॉपी पर थाने की मुहर और पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर चेक कर लें। इसके बाद पुलिस मामले की जांच करती है। अगर पुलिस को लगता है कि केस में कोई साक्ष्य नहीं है तो इसे बंद किया जा सकता है लेकिन ऐसा करने पर इसकी सूचना शिकायतकर्ता को देनी होती है और अगर सबूत हैं तो मामले में चार्जशीट दाखिल कर कोर्ट में ट्रायल शुरू किया जाता है। सामान्यत एफआईआर घटनास्थल के पास के थाने में ही दर्ज करानी चाहिए लेकिन अगर पीडि़त को किसी परिस्थितिवश बाहरी थाने में शिकायत दर्ज करानी पड़ रही है तो बाद में शिकायत को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इसे जीरो एफआईआर कहते हैं।

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