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शांतिनिकेतन में आश्रम की तर्ज पर होती है पढ़ाई


कोलकत्ता. अपने शांत वातावरण और साहित्यिक पृष्ठभूमि के लिए शांतिनिकेतन मशहूर है। ये जगह कोलकाता से 180 किमी उत्तर की ओर पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है। कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना कर इस जगह को मशहूर बना दियाण् विश्व-भारती विश्वविद्यालय कई मायनों में अनोखा है। इस विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति और परम्परा के अनुसार दुनियाभर की किताबें पढ़ाई जाती हैं। यहां भारत की पुरानी आश्रम शिक्षा पद्धति के अनुसार पढ़ाई होती है। यहां किसी पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर छात्रों को पढ़ते हुए देखा जा सकता है। शांतिनिकेतन का अर्थ होता है। शांति से भरा हुआ घर इसके आस-पास की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। देश-दुनिया के पर्यटक इस जगह को घूमने जाते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि शांतिनिकेतन मात्र पढ़ाई के लिए मशहूर है। कलाप्रेमियों को भी शांतिनिकेतन बहुत पसंद है क्योंकि ये जगह डांस, म्यूजिक, ड्रामा जैसी सांस्कृतिक कलाओं का हब है। तरह-तरह के भारतीय त्योहार भी यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। हर वर्ष होली मनाने के लिए हजारों लोग शांतिनिकेतन जाते हैं।

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खाने की बात करें तो शांतिनिकेतन की फिश करी का कोई जवाब नहीं है। बंगाली खानपान के शौकीन लोगों के लिए तो ये जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। यहां दीक्षांत समारोह में ग्रेजुएट होने वाले हर छात्र को सप्तपर्णी वृक्ष की पत्तियां दी जाती हैं। इसका नाम संस्कृत भाषा का है जिसका अर्थ स्पष्ट है सात पत्तों के गुच्छे होते हैं। बांग्ला भाषा में इसे छातिम कहते हैं। गुरुदेव टैगोर के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर सप्तपर्णी या छातिम के नीचे अक्सर ध्यान करते थे। शांतिनिकेतन के आस-पास कई सारी जगहें हैं जो घूमी जा सकती हैं। रवीन्द्रनाथ के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने सन् 1863 में 7 एकड़ जमीन पर एक आश्रम की स्थापना की थी। वहीं आज विश्वभारती है।

 

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