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गूगल-इक्विटास करार पर नजर

मुंबई. जमा जुटाने के लिए इक्विटास स्मॉल फाइनैंस बैंक ने हाल ही में गूगल पे के ग्राहक हासिल करने का जो करार किया, उससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) असहज हो गया है। केंद्रीय बैंक बैंकिंग क्षेत्र पर इसके असर की थाह लेने के लिए सौदे पर नजर रख रहा है।

आरबीआई हमेशा बैंकिंग में तकनीकी नवोन्मेष के पक्ष में रहा है, लेकिन उसने सुनिश्चित किया है कि नियम-कायदे नवोन्मेष से एक कामद आगे ही रहें। ऐसा लग रहा है कि यह गूगल, फेसबुक, एमेजॉन, ऐपल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी तकनीकी कंपनियों को लेकर सतर्क है। नियामक ने 1 जुलाई को जारी छमाही वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएसआर) में भी कहा है कि वित्तीय सेवाओं में बड़ी तकनीकी कंपनियों की बढ़ती मौजूदगी वित्तीय स्थायित्व के लिए एक बड़ा जोखिम है। एफएसआर में कहा गया है कि कभी-कभी बड़ी तकनीकी कंपनियां ‘अपारदर्शी व्यापक परिचालन ढांचा’ रखती हैं और ‘वित्तीय सेवाओं में दबदबा कायम’ कर सकती हैं। यही वजह है कि गूगल पे की मदद वाली जमा योजना से आरबीआई असहज है। इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय बैंक इस मसले पर कोई ठोस राय बनाने से पहले इसके नफे-नुकसान देख रहा है। हालांकि यह सौदा मौजूदा नियमनों के दायरे में नजर आ रहा है।

ऐसी बहुत सी चिंताओं का जिक्र डिजिटल ऋण पर कार्य समूह की रिपोर्ट में भी किया जा सकता है, जो जल्द ही जारी होने के आसार हैं। आरबीआई के कार्यकारी निदेशक जयंत कुमार दास की अगुआई वाले कार्य समूह का गठन जनवरी में किया गया था। यह एक बार नियत तिथि तक रिपोर्ट देने में चूक गया था क्योंकि इसे विचार-विमर्श की प्रक्रिया पूरी करने के लिए ज्यादा समय की दरकार थी। इसके बाद कार्यसमूह को अपनी रिपोर्ट अगस्त में देनी थी। लेकिन सूत्रों ने कहा कि अब इसे बैंकिंग उत्पादों के डिजिटल मार्केटप्लेस पर ध्यान देने को कहा गया है, जिसका संबंध इक्विटास-गूगल समझौते से भी हो सकता है। इक्विटास, उसकी तकनीकी प्रदाता सेतु और गूगल, सभी ने साफ किया है कि इस गठजोड़ को सामान्य उत्पाद पेशशकश से ज्यादा कुछ नहीं देखा जाना चाहिए। गूगल ने एक ब्लॉग पोस्ट में शुक्रवार को कहा कि वित्तीय सेवाओं में उत्पाद नियमित उद्योगों के हैं और हरेक कारोबारी का गूगल प्लेटफॉर्म से जुडऩे से पहले इन उत्पादों को मुहैया कराने के लिए अधिकृत होना जरूरी है।

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