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Continued focus on awareness, acceptance and compliance needed to reduce the burden of asthma in India during World Asthma Awareness Month

विश्व दमा जागरूकता माह के दौरान भारत में दमे का बोझ कम करने के लिए जागरूकता, स्वीकृति और अनुपालन पर निरंतर फोकस की ज़रूरत

सिप्ला अपने ‘बेरोक जिंदगी’ कैंपेन और ब्रीदफ्री प्रोग्राम के माध्यम से जागरूकता का प्रसार कर रहा है

जयपुर। दुनिया भर में अस्थमा से 262 मिलियन लोग प्रभावित हैं, इसे देखते हुए इस वर्ष के वर्ल्ड अस्थमा डे (world asthma day) (विश्व दमा दिवस) की थीम ‘अस्थमा केयर फॉर ऑल’ (दमा की सर्वसुलभ देखभाल) रखी गई है। इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल के संसाधनों की बेहतर पहुंच के माध्यम से प्रभावकारी रोग प्रबंधन को बढ़ावा देना है। इस वर्ष की थीम भारत में दमा की वर्तमान स्थिति को मजबूती से प्रस्तुत करती है।

सिप्ला का ‘बेरोक जिंदगी’ कैंपेन

सिप्ला (Cipla) का ‘बेरोक जिंदगी’ कैंपेन (Cipla’s ‘Berok Zindagi’ campaign) जैसी सार्वजनिक और रोगी जागरूकता पहलें महत्वपूर्ण मंच हैं जो सामाजिक बातचीत के माध्यम से आम जनता को शामिल करता है और जानकारी-से पूर्ण बातचीत के माध्यम से गलत जानकारियों को दूर करता है। इस रोग से देश में 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रभावित किए जाने की आशंका है और इनमें से ज्यादातर की पहचान नहीं हो पाती या फिर उपचार नहीं हो पाता। यही नहीं, भारत में दमा से होने वाली मौतों का अनुपात वैश्विक कुल मौतों का 42 प्रतिशत है, और यह दुनियाभर के मामलों का महज 13 प्रतिशत है। यह मुख्य रूप से रोग के प्रति अपर्याप्त जागरूकता और इन्हेलर थेरेपी के बारे में गलत धारणाओं के कारण है।

गंभीर दमा के 70 प्रतिशत मामले चिकित्सीय रूप से बिना निदान के

डॉ. शीतू सिंह, इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट, लंग सेंटर, राजस्थान हॉस्पिटल, जयपुर ने कहा कि, “भारत में दमा सामाजिक कलंक, गलत धारणाओं और झूठी बातों का शिकार है, जैसा कि लगभग 23 प्रतिशत रोगी ही अपनी अवस्था को इसके वास्तविक नाम से पुकारते हैं। गंभीर दमा के 70 प्रतिशत मामले चिकित्सीय रूप से बिना निदान के रह जाते हैं। इसके अलावा, इन चुनौतियों के कारण रोगियों के लिए समय पर चिकित्सा सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है, और इसलिए वे शुरुआत में अपनी स्थिति पर काबू नहीं कर पाते हैं। अस्थमा जैसे पुराने श्वसन संबंधी रोगों के दीर्घकालिक प्रबंधन के लिए जल्दी पहचान और हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हैं और रोगी के परिणामों में सुधार में मदद करने के लिए इन चुनौतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

रोगियों में इन्हेलेशन थेरेपी का प्रयोग 9 प्रतिशत से भी कम

डॉ. निष्ठा सिंह, चेस्ट कंसल्टेंट, अस्थमा भवन, जयपुर ने कहा कि, “हालांकि, इन्हेलेशन थेरेपी अस्थमा के प्रबंधन की मुख्य बुनियाद है, फिर भी भारत में इनहेलर से सम्बंधित सामाजिक कलंक ने इस रोग के कुप्रबंधन को और बढ़ा दिया है। यह विशेष रूप से बच्चों में मामले में ज्यादा प्रबल है जहाँ पेरेंट्स अक्सर रोग को छिपा जाते हैं और इस प्रकार जब तक लक्षण बिगड़ नहीं जाते तब तक उपचार से बचते या इसे टालते रहते हैं। असल में, डॉक्टर द्वारा डायग्नोस किये गए रोगियों में इन्हेलेशन थेरेपी का प्रयोग 9 प्रतिशत से भी कम है।

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