आईआईएम रायपुर ने हरित अर्थव्यवस्था परिवर्तन पर केंद्रित भारत ग्रामीण संगोष्ठी (इंडिया रूरल कोलोक्वी) का 5वां संस्करण आयोजित किया, आयोजन का उद्देश्य पारंपरिक ग्रामीण ज्ञान को आधुनिक सतत विकास प्रथाओं से जोड़ना रहा, निहारिका बारिक, आईएएस और भीम सिंह, आईएएस ने सतत विकास में पंचायतों की भूमिका पर विचार रखे, उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने के लिए अभिनव सोच की आवश्यकता बताई, आईआईएम रायपुर के डॉ. राहुल भगत और प्रो. संजीव पराशर ने ग्रामीण रूपांतरण पर अकादमिक दृष्टिकोण साझा किया,
रायपुर. भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रायपुर ने, जनजातीय अनुसंधान संस्थान (TRI), वन विभाग और ग्रीन गवर्नेंस विभाग के सहयोग से, इंडिया रूरल कोलोक्वी का 5वां संस्करण सफलतापूर्वक आयोजित किया। इसका विषय था – “हरित अर्थव्यवस्था: छत्तीसगढ़ के गांवों से हरित आर्थिक परिवर्तन की दिशा में नेतृत्व” (“Harit Arthvyavastha: Villages Leading Chhattisgarh’s Green Economic Transition” )। इस आयोजन में नीति निर्माताओं, जमीनी स्तर के नेताओं, विद्यार्थियों और परिवर्तनकर्ताओं ने मिलकर ग्रामीण भारत को सतत विकास का इंजन बनाने की दिशा में विचार-विमर्श किया।
संवाद श्रृंखला में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत की लगभग 60% आबादी, और छत्तीसगढ़ की 80% से अधिक जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में रहती है, इसलिए गांव ही हरित आर्थिक बदलाव की असली ताकत बन सकते हैं।
आईआईएम रायपुर के निदेशक-प्रभारी प्रो. संजीव पराशर ने कहा, “सच्चा विकास तभी संभव है जब समाज का हर व्यक्ति पोषित हो। ग्रामीण रूपांतरण के लिए समझ, संवेदना और समावेशी रणनीतियों की जरूरत है। भारत की 60% से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, इसलिए नीति और व्यवहार के बीच की खाई को पाटने के लिए इस तरह की पहल आवश्यक है। आईआईएम रायपुर को ऐसे सहयोगों के लिए एक मंच के रूप में सेवा करने पर गर्व है, जो यह सुनिश्चित करता है कि हमारी शैक्षणिक अंतर्दृष्टि वास्तविक दुनिया में प्रभाव में परिवर्तित हो।”
उद्घाटन सत्र “लोकलिटी कॉम्पैक्ट फॉर ग्रीन इकोनॉमी ट्रांजिशन” में महिला सरपंचों, उद्यमियों और प्रगतिशील किसानों ने वर्षा जल संचयन की चुनौतियों और रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव जैसी जमीनी हकीकतें साझा कीं।
पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग की प्रमुख सचिव निहारिका बारिक, आईएएस ने कहा, “हरित अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव केवल तकनीक पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह स्थानीय समाधान, सामुदायिक स्वामित्व और सशक्तिकरण पर आधारित है। अब सरकार एक सुगमकर्ता है और जनता असली कार्यान्वयनकर्ता।”
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव, आईएएस, श्री भीम सिंह ने जल जीवन मिशन और राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं में महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास और पंचायत-स्तरीय भागीदारी के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि ग्रामीण प्रशासन को जल, मृदा और वन संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
किसानों, सरपंचों और युवा नेताओं ने अपनी चिंताएं साझा कीं—जैसे पारंपरिक खेती के तरीकों का खोना, पानी की कमी, असफल पुनर्वनीकरण प्रयास, और जैविक खाद तथा सतत तकनीकों के प्रति जागरूकता की कमी। मुख्यमंत्री सचिव एवं सुशासन व कन्वर्जेंस विभाग के सचिव डॉ. राहुल भगत ने कहा, “हरित अर्थव्यवस्था कोई विलासिता नहीं बल्कि जीवन रणनीति है। यह स्वच्छ हवा, स्वस्थ मृदा और मजबूत किसानों की बात है। हर छोटा कदम मायने रखता है और इसे सामूहिक आंदोलन बनाना होगा।”
पैनल चर्चाओं में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मूल्य संवर्धन, सतत विकास में महिलाओं की भूमिका, पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों का उपयोग और खेती समुदाय की मदद के लिए ड्रोन से लेकर डिजिटल केंद्रों तक की तकनीक के इस्तेमाल पर चर्चा हुई। कार्यक्रम का समापन करते हुए उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने आईआईएम रायपुर और जनजातीय अनुसंधान संस्थान को हरित विकास पर संवाद की अगुवाई करने के लिए सराहा और कहा कि ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर और हरित आर्थिक केंद्र बनाने के लिए सोच में नवाचार की जरूरत है।