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Nature of mind

मन का स्वभाव

रामकृष्ण परमहंस (Ramakrishna Paramahamsa) कहा करते थे—‘एक हाथी है, उसे नहला-धुलाकर छोड़ दो तब फिर वह क्या करेगा? मिट्टी में खेलेगा और शरीर को फिर से गंदा कर लेगा। कोई उस पर बैठे, तो उसका शरीर भी गंदा अवश्य होगा। लेकिन यदि हाथी को स्नान कराने के बाद बाड़े में बांध ​दिया जाए तब फिर हाथी अपना शरीर गंदा नहीं कर सकेगा। इसी प्रकार मनुष्य का मन भी एक हाथी के समान है।

भगवान के भजन से होगा शुद्ध

एक बार ध्यान-साधना और भगवान के भजन से वह शुद्ध हो गया तो उसे स्वतंत्र नहीं कर देना चाहिए। इस संसार में पवित्रता भी है, गंदगी भी है। मन का स्वभाव है वह गंदगी में जाएगा और मनुष्य देह को दूषित करने से नहीं चूकेगा। इसलिए उसे गंदगी से बचाये रखने के लिये एक बाड़े की जरूरत होती है, जिसमें वह घिरा रहे। गंदगी की संभावनाओं वाले स्थानों में न जा सके।’ ‘ईश्वर भजन, उसका निरंतर ध्यान एक बाड़ा है, जिसमें मन को बंद रखा जाना चाहिए, तभी सांसा​रिक संसर्ग से उत्पन्न दोष और मलिनता से बचाव संभव है।

…मनुष्य पापकर्म से बच जाएगा

भगवान को बार बार याद करते रहोगे तो मन अस्थायी सुखों के आकर्षण और पाप से बचा रहेगा और अपने जीवन के स्थायी लक्ष्य की याद बनी रहेगी। उस समय दूषित वासनाओं में पड़ने से स्वत: भय उत्पन्न होगा और मनुष्य उस पापकर्म से बच जाएगा, जिसके कारण वह बार बार अपवित्रता और मलिनता उत्पन्न कर लिया करता है।’ – स्मिता मिश्र

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