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अधिग्रहण संहिता के नियम हुए सख्त

नई दिल्ली. भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अपने निदेशक मंडल की बैठक में लिक्विड योजनाओं के मूल्यांकन के तरीके को सख्त करने का निर्णय किया गया। इसके साथ ही कर्ज समाधान में गई कंपनियों के अधिग्रहण के लिए खुली पेशकश से छूट मांगने वाले कॉरपोरेट को इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी। लिक्विड योजनाओं के पोर्टफोलियो से जुड़े जोखिमों को दर्शाने के लिए बाजार नियामक ने कहा कि 30 दिन या उससे अधिक की परिपक्वता वाली सभी डेट प्रतिभूतियां मार्क-टु-मार्केट होंगी। अभी तब फंड हाउस के 60 दिन से कम परिपक्वता वाली प्रतिभूतियों को मार्क- टु-मार्केट नहीं होते थे। पिछले साल सितंबर में आईएलऐंडएफएस संकट के बाद लिक्विड योजनाओं से निवेश की निकासी और तरलता संकट को देखते हुए सेबी ने यह कदम उठाया है। इस बीच सेबी ने कहा कि ऋणशोधन एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) में जाने वाली कंपनियों के मामले में खुली पेशकश की छूट केवल ऋणदाताओं के लिए ही लागू होगी। इस कदम से एतिहाद और जेट एयरवेज के बीच प्रस्तावित सौदा पटरी से उतर सकता है।                                                           एतिहाद ने जेट में अपनी मौजूदा हिस्सेदारी 24 फीसदी से ज्यादा बढ़ाने के लिए खुली पेशकश में छूट की मांग की थी। पीडब्ल्यूसी इंडिया में वित्तीय सेवा – टैक्स लीडर भवीन शाह ने कहा एआरसी और अन्य ऋणदाता (अधिसूचित बैंकों को छोड़कर) जिनका कर्ज कंपनियों में फंसा हो और वह कॉरपोरेट कर्ज पुनर्गठन प्रक्रिया में गई हो वे अधिग्रहण संहिता तथा मूल्य निर्धारण में छूट का लाभ नहीं ले सकेंगे। अधिग्रहण संहिता से छूट आईबीसी प्रक्रिया में जाने वाली कंपनियों पर ही लागू होगी। सेबी ने कहा कि केवल अदालत या पंचाट ही इस तरह की छूट की अनुमति दे सकती है। इससे पहले अदालत के अलावा सक्षम प्राधिकरण को भी खुली पेशकश से छूट देने का अधिकार था। विशेषज्ञों का कहना है कि सेबी के इस कदम से आईबीसी के तहत सूचीबद्घ फर्मों को खरीदने की लागत बढ़ जाएगी।

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