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ड्रोन कारोबार की उड़ान में अरबपति

Jaipur: देश के कुछ बड़े कॉरपोरेट समूह ड्रोन कारोबार में दिलचस्पी बढ़ाते हुए इस क्षेत्र की स्टार्टअप का अ​धिग्रहण कर रहे हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि तेजी से उभरते इस क्षेत्र का मूल्यांकन अभी कम है और नीतियां भी बेहद अनुकूल हैं। आरव अनमैन्ड सिस्टम्स (एयूएस) के मुख्य कार्या​धिकारी (सीईओ) विपुल सिंह का कहना है, ‘भारतीय कंपनियां एरोस्पेस और स्पेस टेक की की दौड़ में पिछड़ गई हैं। लेकिन अब कोई भी मौका नहीं गंवाना चाहता है। ये सभी अनुभवी कारोबारी हैं और उन्हें इस बात का अहसास हो रहा है कि समस्या का समाधान करने की क्षमता वाली प्रौद्योगिकी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण भविष्य में तेजी से बढ़ेगा।’ विपुल ने आईआईटी कानपुर के अपने दो सहपाठियों के साथ मिलकर एयूएस की स्थापना की थी और अब टाटा स्टील उनका एक बड़ा ग्राहक है। टाटा स्टील ने एयूएस ड्रोन को 23 जगहों पर अपने 14 खदानों और इन्वेंट्री की निगरानी करने के लिए लगाया है। उन्होंने कहा, ‘पहले जिस काम में कई हफ्ते लग जाते थे वे अब कुछ दिनों में किए जा सकते हैं और अच्छी बात यह है कि डेटा भी बेहद सटीक तरीके से मिल जाता है। इसकी वजह से अब  सटीक तरीके से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और योजना बनाई जा सकती है। डेटा के साथ सेवाओं का पैकेज खरीदारों को आकर्षित कर रहा है। ’

जो अधिकारी अरबपतियों के ड्रोन कारोबार की रणनीति तैयार कर रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि यह बाजार बेहद तेजी से बढ़ेगा और इसका विस्तार रक्षा क्षेत्र जैसे विशिष्ट क्षेत्र से वाणिज्यिक क्षेत्र में भी होगा। मसलन इसकी शुरुआत कृषि क्षेत्र से होकर डिलिवरी के क्षेत्र तक हो सकती है जिससे यह एक ऐसा बड़ा बाजार बन जाएगा जिसमें संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। हालांकि अभी इनका बाजार पूंजीकरण उस कीमत से काफी कम है जिसका भुगतान ये कंपनियां स्टार्टअप के लिए कर रही हैं और इससे कई कारोबारों की संभावनाएं बनेंगी।

अदाणी समूह के उपाध्यक्ष (रणनीति एवं चेयरमैन नेटवर्क) रंगराजन विजयराघवन का कहना है, ‘मौजूदा ड्रोन बाजार पर सैन्य क्षेत्र का दबदबा है। हम यह उम्मीद करते हैं कि बाजार अगले पांच सालों में वाणिज्यिक ऐप्लिकेशन की तरफ बढ़ेगी क्योंकि सरकार की अनुकूल नीतियां वाणिज्यिक ड्रोन के लिए तेजी से अनुकूल माहौल बना रही हैं।’

पिछले हफ्ते अहमदाबाद के कारोबारी समूह ने काफी तेज रफ्तार से नए क्षेत्र में प्रवेश करते हुए बेंगलूरु के ड्रोन स्टार्ट अप, जनरल एरोनॉटिक्स को अपनाया और इसके लिए नकद करार किया गया। सूत्रों का कहना है कि इस अधिग्रहण के लिए निवेश की राशि 50 करोड़ रुपये से कम थी वहीं इसकी तुलना में यह सीमेंट क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए 80,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी।

लेकिन जनरल एरोनॉटिक्स कंपनी को एग्रीड्रोन क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने का मौका देगी जिस पर सरकार ध्यान दे रही है। केंद्र ने प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 6,000 रुपये की फंडिंग की घोषणा भी की है ताकि कृषि क्षेत्र में ड्रोन के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सके। रंगराजन का कहना है कि यह समूह, ड्रोन के वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए कई क्षेत्रों में मौके देख रहा है लेकिन कृषि क्षेत्र पर प्राथमिकता होगी।

रंगराजन ने कहा, ‘कृषि क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं क्योंकि इसमें इनका साधारण तरीके से इस्तेमाल हो सकता है मसलन कीटनाशक के छिड़काव के साथ-साथ श्रमिकों की कमी, पानी की खपत, फसल की बरबादी जैसी कई समस्याओं के समाधान के रूप में भी इसका उपयोग संभव होगा। किसान भी उत्पादन में 10-15 प्रतिशत की बढ़ोतरी देख सकते हैं।’

रिलायंस इंडस्ट्रीज इस खंड में सबसे पहले कदम रखने वाली दिग्गज कंपनियों में एक रही है। वर्ष 2019 में कंपनी ने बेंगलूरु स्थित एस्टेरिया एयरोस्पेस का केवल 23 करोड़ रुपये में अधिग्रहण कर लिया था।

एस्टेरिया एयरोस्पेस के सह-संस्थापक निहार वर्तक ने कहा, ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ रहा जिसे देखते हुए बड़ी  कंपनियां इस कारोबार में दोबारा कदम रख रही हैं। उदाहरण के लिए रिलायंस एक ऐसा कारोबारी समूह है जिसने कई कारोबार बिल्कुल नए सिरे से शुरू किया है। कंपनी प्रति महीने करीब 100 डोन बना सकती है। वह निगरानी, दूरसंचार और कृ​षि जैसे क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करेगी।

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