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जीएसटी परिषद की जनवरी में बैठक!

नई दिल्ली. केंद्र सरकार जनवरी की शुरुआत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की बैठक करने की संभावना तलाश रही है। इस बैठक में कुछ वस्तुओं पर व्युुत्क्रम शुल्क ढांचे को तार्किक बनाने और राज्य के वित्त मंत्रियों के साथ केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की बजट पूर्व चर्चा की बुनियाद तैयार करने पर ध्यान दिया जाएगा। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘मौजूदा शीत सत्र 23 दिसंबर को खत्म होगा, जिसके बाद क्रिसमस और नववर्ष की छुट्टियां होंगी। इसके बाद हम जीएसटी परिषद की बैठक बुला सकते हैं, जो सदस्यों की उपलब्धता पर निर्भर करेगा।’ केंद्रीय वित्त मंत्री और राजस्व सचिव तरुण बजाज सहित बजट बनाने में शामिल वरिष्ठ अधिकारी राज्यों के वित्त मंत्रियों की राय लेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि 2022-23 के आम बजट से उनकी क्या अपेक्षाएं हैं। अधिकारियों ने कहा कि अभी इस बारे में निर्णय नहीं किया गया है कि किन वस्तुओं की दरें तार्किक बनाने पर विचार किया जाएगा क्योंकि इस मसले पर गठित मंत्रिसमूह ने अभी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है। मगर उद्योग संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि कुछ फार्मास्युटिकल उत्पादों की दरें तार्किक बनाने की जरूरत है, खास तौर पर 5 या 12 फीसदी कर दायरे वाले उत्पाद, जिनके कच्चे माल पर कर की दर ऊंची है। भारतीय उद्योग परिसंघ में अप्रत्यक्ष कराधान के वरिष्ठ सलाहकार अजमेर सिंह बिस्ला ने कहा, ‘कुछ फार्मास्युटिकल उत्पाद और ट्रैक्टर अभी व्युत्क्रम कर ढांचे के दायरे में हैं।’ हालांकि अधिकतर वाहनों पर 28 फीसदी कर लगाता है, लेकिन जबकि 1800 सीसी से कम इंजन क्षमता वाले कुछ ट्रैक्टरों पर 12 फीसदी कर लगाता है।

उक्त अधिकारी ने बताया कि उर्वरक निर्माताओं ने व्युत्क्रम कर ढांचे पर प्रस्तुति भी दी है। लेकिन सरकार मानती है कि उवर्रक और ट्रैक्टर जैसे उत्पाद राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकते हैं और इन्हें व्युत्क्रम कर ढांचे से बाहर करने पर तैयार उत्पाद पर जीएसटी दर बढ़ जाएगी।

17 सितंबर को लखनऊ में आयोजित जीएसटी परिषद की 25वीं बैठक में जूते-चप्पलों और कपड़ों पर व्युत्क्रम कर ढांचे को तार्किक बनाने का निर्णय किया गया था। इसके अनुसार 1 जनवरी, 2022 से किसी भी मूल्य के जूते-चप्पलों और कपड़ों पर 12 फीसदी जीएसटी लगाने का निर्णय किया गया है। इससे पहले 1,000 रुपये से कम कीमत वाले कपड़े और जूते-चप्पलों पर 5 फीसदी कर लगता था। कपड़ा उद्योग का एक वर्ग इसका विरोध कर रहा है।

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