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क्या प्रॉपर्टी में उछाल लाएगा नया किराया कानून?

मोदी सरकार लायी नया किराया कानून, अचल सम्पत्ति को किराये पर उठाने वालों को होगा फायदा

टीना सुराणा. जयपुर। देश की राजधानी दिल्ली समेत दूसरे छोटे-बड़े शहरों लाखों मकान मालिकों के लिए मकान-दुकान किराये पर उठाना कमायी का बहुत बड़ा जरिया है। शहरों में जमीन-ओ-मकानों के आममान छूते दामों के चलते कितने ही लोग दूसरों की सम्पत्ति पर कब्जा करने की जुगत में रहते हैं। ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जो मकान-दुकान या अन्य तरह की प्रॉपर्टी पर अधिकार को लेकर अदालतों तक गये हैं। इनमें अनेक मामले किरायेदार और मकान मालिकों के बीच के रहे हैं। दिल्ली जैसे शहर में अनेक किरायेदारों ने इसी तरह मकान-दुकान हड़पे हुए हैं। कई मकान मालिकों को लाखों रुपये देकर मकान-दुकान खाली करवाने पड़े हैं।

11 महीने का रेंट एग्रीमेंट अधिनियम बनाया

इसी के चलते 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट अधिनियम (rent agreement act) बनाया गया।लेकिन आज तक किराये पर नियंत्रण नहीं लग सका है। कई मकान मालिक मनमजी से किराये में वृद्धि करते रहते हैं। सन् 1948 में भारत सरकार ने किराया नियंत्रण कानून (rent control law) पास किया था। लेकिन इससे मनमाने ढंग से किराया वसूली पर लगाम न लग सकी। अब केंद्र सरकार कोरोना-काल में कई दूसरे कानूनों की तरह नया किराया कानून लेकर आयी है, जिसे ‘मॉडल टेनेंसी एक्ट का नाम दिया गया है।

प्रॉपर्टी बाजार काफी ठण्डा पड़ा हुआ

सरकार का कहना है कि इससे मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच तनाव खत्म होगा। अक्सर दोनों के बीच आपसी तालमेल में अभाव देखा गया है, जिसके चलते दोनों का झगड़ा अदालतों तक चला जाता है। मोदी सरकार के इस नये कानून के जो भी सियासी मायने निकाले जाएँ, लेकिन जानकारों का कहना है कि जमीन की गिरती कीमतों को बढ़ाने में ये नया कानून जरूर कारगर साबित हो सकता है। क्योंकि मौजूदा दौर में जमीन की गिरती कीमत से प्रॉपर्टी बाजार काफी ठण्डा पड़ा हुआ है, जो देश की अर्थ-व्यवस्था के कमजोर होने का संकेत है। ऐसे में नया कानून उन मकान मालिकों को बल देगा, जो किरायेदारों की दुनिया में स्थापित है और जो स्तापित होने वाले हैं।

पानी-बिजली के बिल जैसे मामले आपसी सहमति पर ही निर्भर

बताते चलें प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मॉडल किरायेदारी अधिनियम (model tenancy act) के आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी है। इसके तहत सभी नये किराये के सम्बन्ध में लिखित समझौते की बात कही गयी है, जिसे सम्बन्धित जिला किराया प्रधिकार में पेश करना होगा। इस अधिनियम (model tenancy act) के तहत किरायेदारों को अधिकतम दो महीने का अग्रिम (एडवांस) किराया देना होगा। जबकि कॉमर्शियल सम्पत्ति के मामले में अधिकतम छह महीने का अग्रिम किराया देना होगा। रखरखाव (मेंटीनेंस) और पानी-बिजली के बिल जैसे मामले आपसी सहमति पर ही निर्भर होंगे।

मामलों को निपटाने में कोई दिक्कत नहीं

इस बारे में केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी (Union Housing and Urban Development Minister Hardeep Puri) का कहना है कि मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच एक विश्वास स्थापित होगा, जिससे देश भर में आवासीय किराया सम्बन्धी कानूनी ढांचे को व्यवस्थित करने में मदद मिलेगी। मॉडल किरायेदारी अधिनियम आगामी प्रभाव से लागू होगा और वर्तमान किरायेदारी व्यवस्था को प्रभावित नहीं करेगा। इस नये कानून में सबसे अहम बात यह है कि इसके तहत प्रत्येक जिले में अलग किराया प्राधिकार, अदालत और न्यायाधिकरण का गठन किया जाएगा, जिससे मामलों को निपटाने में कोई दिक्कत नहीं होगी।

नया कानून प्रॉपर्टी मालिकों को ताकत देगा

किराया और समय का निर्धारण मकान मालिक और किरायेदार की आपसी सहमति से ही होगा। इस बारे में प्रॉपटी के जानकार सिद्धार्थ खींवसरा ने बताया कि मौजूदा समय में महामारी और आर्थिक मंदी के चलते बाजार चौपट है। लोगों में एक भय है कि आगे क्या होगा? एक साल से अधिक समय हो गया है, महामारी के चलते बड़े-बड़े बिल्डरों का कारोबार ठप पड़ा है। ऐसे में अब ये नया कानून प्रॉपर्टी मालिकों को ताकत देगा कि किरायेदार अब किरायेदार ही बनकर रहेंगे। नये कानून के आने से प्रॉपटीज में अपना पैसा लगाने वालों में खुशी है; क्योंकि मकान के किराये का कारोबार भी किसी कार्पोरेट जगत से कम नहीं है। वर्तमान में शहरों में नहीं, बल्कि जिला स्तर और तहसील स्तर पर मकान, दुकान और मॉल सहित अन्य कार्पोरेट्स बड़े कारोबारी के रूप में उभरे हैं।

सम्पत्ति मालिक किरायानामा

30 साल से प्रॉपर्टी का काम करने वाले इन्द्रजीत सिंह का कहना है कि नये कानून की क्या जरूरत थी? पहले भी कोई भी सम्पत्ति मालिक किरायानामा (रेंट एग्रीमेन्ट) और आपसी सहमति के बाद ही किसी के हवाले अपना मकान-दुकान करता था। कोई जोर-जबदस्ती से न तो पहले किराये पर कोई मकान-दुकान ले-दे सकता था और न अब ले-दे सकता है। उनका कहना है कि सरकार ने नये कानून में जिला स्तर पर किराया प्राधिकार और अदालत और न्यायाधिकरण के गठन की बात कहीं है। इससे तो इतना ही होगा कि अधिक मामले अदालत तक जाएँगे, जबकि पहले आपसी सहमति से मामला न निपटने पर ही लोग अदालत जाते थे।

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