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2 years of challenges filled Shaktikanta Das

चुनौतियों से भरे शक्तिकांत दास के 2 साल

जयपुर। कोविड-19 संकट ने विभिन्न संस्थानों के अधिकारियों के दृढ़निश्चय और संकल्प शक्ति को परखा है और इन सबमें भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank Of India) (आरबीआई) (RBI) अग्रणी रहा है जिसके प्रमुख शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) हैं जो पूर्व अफसरशाह रहे हैं और सामान्य तथा सरल व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हैं, वह सुर्खियों में बने रहने की चाहत नहीं रखते। संकट अभी खत्म नहीं हुआ है लेकिन दास ने संकट के असर को कम करने के लिए जो भी अहम उपाय हैं उनके लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की कोशिश की है।

अर्थव्यवस्था में 7.4 लाख करोड़ रुपये की नकदी डाली

अर्थव्यवस्था में आखिरी बार 7.4 लाख करोड़ रुपये की नकदी डाली गई जिससे सरकार को 16 साल के कम औसत प्रतिफल पर रिकॉर्ड 12 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेने में मदद मिली। कॉरपोरेट जगत ओवरनाइट रीपो दर से कम एक साल के दर का हवाला देते हुए कम ब्याज दर पर पैसे जुटाने की कोशिश कर रहा है। सरकार के प्रोत्साहन उपायों से निश्चित रूप से मदद मिली है लेकिन ज्यादा बोझ आरबीआई ने उठाया है।

आरबीआई गवर्नर ने लगातार वृद्धि पर ध्यान केंद्र्रित

भारतीय स्टेट बैंक (Reserve Bank Of India) के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष (Economist Soumya Kanti Ghosh) ने कहा, ‘बड़े हिस्से में तेज रफ्तार से आर्थिक सुधार आरबीआई के अपरंपरागत नीतिगत उपायों का नतीजा है जिसका स्पष्ट रूप से वांछित प्रभाव पड़ा है।’ 12 दिसंबर को अपने कार्यकाल के दो साल पूरे करने वाले आरबीआई गवर्नर ने लगातार वृद्धि पर ध्यान केंद्र्रित किया है जो उनके पूर्ववर्ती गवर्नरों से बिल्कुल अलग दृष्टिकोण है जिनकी प्राथमिकता मुद्रास्फीति थी। दास ने जहां वृद्धि में गिरावट को रोकने में अपनी भूमिका निभाई है वहीं वह तीन तिमाहियों तक महंगाई के लक्ष्य से चूक जाएंगे।

दरों में 250 आधार अंक तक की कटौती बनाए रखी

कोविड संकट (Covid crisis) को ध्यान में रखते हुए आरबीआई (RBI) ने फरवरी 2019 के बाद से दरों में 250 आधार अंक तक की कटौती बनाए रखी है और नीतिगत दरों में 115 आधार अंकों की कटौती की है। मुमकिन है कि आगे दरों में कटौती न हो लेकिन वास्तविक ब्याज दरें ऋणात्मक दायरे में हैं जो कभी जल्द तय नहीं हो सकती हैं।

बॉन्ड बाजार अर्थव्यवस्था में नकदी की भरमार से खुश

जमाकर्ताओं की स्थिति खराब है और यहां तक कि शीर्ष रेटिंग वाली कंपनियां भी कम ब्याज पर मिले पैसे पर ऐश कर रही हैं। हालांकि ऐसा सभी कंपनियों के बारे में नहीं कहा जा सकता है जबकि इसके बावजूद आरबीआई ने उनकी वित्तीय फंडिंग के लिए आसान शर्तों की कोशिश की है। बॉन्ड बाजार अर्थव्यवस्था में नकदी की भरमार से निश्चित रूप से खुश है और कम दर के बावजूद, वे आक्रामक हुए बिना सहयोग कर रहे हैं।

अतिरिक्त नकदी की वजह से दरें काफी कम

आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य (Former Deputy Governor Viral Acharya) ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि अगर अतिरिक्त नकदी की वजह से दरें काफी कम हैं और बैंक भी बेहद कम दरों पर कॉरपोरेट जगत को कर्ज देने में दिलचस्पी दिखाते हैं तब यह स्थिति हमारे लिए फिर से परेशानी खड़ी करेगी। वह कहते हैं कि केंद्रीय बैंक के लिए इससे बाहर निकलना आसान नहीं होगा।

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