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First lockdown, then snowfall and now epidemic broke the back of Kashmiri apple farmers

पहले लॉकडाउन, फिर बर्फबारी और अब महामारी ने तोड़ दी कश्मीरी सेब किसानों की कमर

जयपुर। वर्ष 2019 के वसंत में सेब उत्पादक अपने बागों में फूल देखकर खुश थे। ये फूल बम्पर फसल का संकेत दे रहे थे। फिर आया पांच अगस्त, जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया। इसके बाद राज्य में करीब छह महीने तक लॉकडाउन जैसी स्थिति रही। 5 अगस्त के निर्णय के बाद प्रशासन द्वारा हजारों प्रवासी मजदूरों को कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया। स्थानीय लोगों की आवाजाही पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था। लोगों के घर के अंदर रहने और घाटी से प्रवासी श्रमिकों के पलायन करने के कारण, सेब की फसल की तुड़ाई में देरी हुई। आतंकवादियों ने भी सेब उत्पादकों से तुड़ाई नहीं करने के लिए कहा, जिससे देरी और बढ़ गई।

पेड़ों पर ही सड़ने के लिए छोड़ना पड़ा

अक्टूबर 2019 में सेब किसानों ने रात में तुड़ाई करना शुरू कर दिया। इसके बाद धीरे-धीरे प्रवासी मजदूर और ट्रक वाले भी कश्मीर लौटने लगे थे। लेकिन दक्षिण कश्मीर के शोपियां और कुलगाम जिलों में प्रवासी मजदूरों की हत्या की घटनाओं ने व्यापार को फिर रोक दिया। मजदूरों का पलायन फिर से शुरू हो गया तथा ट्रक चालक खाली ट्रक लेकर अपने राज्य जाने लगे। सेब की कुछ किस्मों को पेड़ों पर ही सड़ने के लिए छोड़ना पड़ा। राजस्थान और पंजाब के अनेक ट्रक चालकाें, जो कश्मीर से सेब लेकर जाते हैं, ने घाटी की यात्राएं स्थगित कर दीं।

भारी बर्फबारी ने सेब के बागों को किया तबाह

सेब किसानों की दिक्कतें यहीं खत्म नहीं हुईं। नवंबर में चार तारीख से भारी बर्फबारी शुरू हो गई जिसने सेब के बागों को पूरी तरह से तबाह कर दिया। कश्मीर की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान सेब का ही है। करीब 8,000 करोड़ रुपये का सेब उद्योग गहरे संकट में आ गया। कश्मीर में हर साल 22 लाख मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है। यह देश के कुल सेब उत्पादन के 70 फीसदी से अधिक है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार भारी बर्फबारी के कारण घाटी में 30 से 35 फीसदी सेब के पेड़ टूट गए। भूस्खलन से श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग को नुकसान के कारण कश्मीर के बाहर सेब ले जाने वाले वाहन हफ्तों तक फंसे रहे।

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