नई दिल्ली में बुधवार को आयोजित किसान रैली में भारतीय किसान यूनियन के वरिष्ठ नेता युद्धवीर सिंह ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार अन्य 16 समझौता करने वाले देशों जैसे कि चीन, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और इस समझौते पर हस्ताक्षर करने को उत्सुक आसियान देशों के समक्ष घुटने ना टेके जोकि अपने-अपने देशों में बड़े कृषि व्यवसाइयों को लाभ पहुंचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा आरसीईपी के विरोध में हमने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री को पत्र लिखा है तथा सरकार से मांग की है कि देश के किसानों के हितों को देखते हुए इस समझौते पर भारत हस्ताक्षर नहीं करें।
समझौते को लागू किया गया तो 60 हजार करोड़ के राजस्व का होगा नुकसान
उन्होंने कहा कि आरसीईपी भारत के इस बड़े बाजार में ट्रेड करने वाले भागीदारों के मुनाफे में तो बढ़ोतरी करेगा पर यदि इस समझौते को पूरी तरह लागू किया गया तो देश को 60 हजार करोड़ के राजस्व का नुक़सान होगा। आरसीईपी 92 फीसदी व्यापारिक वस्तुओं पर शुल्क हटाने के लिए भारत को बाध्य करेगा। भारत 2018-19 में आसियान ब्लॉक, जिसके साथ भारत का मुफ्त व्यापार समझौता है, से सस्ते आयात को मंजूरी देकर 26 हजार करोड़ रुपये पहले ही खो चुका है।
देश का घरेलू डेयरी उद्योग होगा सबसे ज्यादा प्रभावित
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि डेयरी हमारे मझौले और छोटे किसानों जिनमें से अधिकतर महिलाएं जुड़ी हुई हैं, को प्रतिदिन नगद धन मुहैया कराती है। भारत पहले से ही डेयरी में आत्मनिर्भर देश है। आरसीईपी के जरिए, विदेशी कम्पनियां अपने ज्यादा उत्पादों को हमारे यहां खपाने की कोशिश करेंगी। अत: हम उन चीजों का आयात क्यों करें जिनकी हमें जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि न्यूजीलैंड ने कहा है कि वह इसके केवल 5 फीसदी डेयरी उत्पादों का निर्यात भारत को करेगा, जबकि न्यूजीलैंड का पांच फीसदी हमारे कुल उत्पादन का एक तिहाई है। अत: बाकि देशों ने भी पांच फीसदी ही निर्यात किया तो, फिर भारत में होने वाले कुल आयात को अंदाजा लगाया जा सकता है।