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हिंदू ही नहीं जैन धर्म से भी है रक्षाबंधन का संबंध, जानें क्या है मान्यता

Tina surana. jaipur
Raksha Bandhan 2019 रक्षाबंधन को लेकर जैन धर्म में अलग ही मान्यता है। हिंदू धर्म में रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) को अधिक महत्व दिया जाता है। रक्षाबंधन को हिंदू धर्म में भाई- बहन के अटूट प्रेम के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी बहने अपने भाई को राखी बांधकर उनसे अपनी रक्षा का वचन लेती है। लेकिन वहीं दूसरी और जैन धर्म (Jain Dharam) में इस दिन को श्रुतसागर मुनि और उनके शिष्यों को विष्णुकुमार के द्वारा मुक्ति दिलाने का दिन बताया गया है। रक्षाबंधन इस साल 2019 में 15 अगस्त 2019 के दिन मनाया जाएगा।

तो आइए जानते हैं रक्षाबंधन की जैन धर्म में क्या है मान्यता

हिंदू धर्म में रक्षाबंधन को अधिक महत्व दिया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं और उससे अपनी रक्षा का वचन लेती है। लेकिन जैन धर्म का इसको लेकर कुछ अलग ही मत है। जैन धर्म की धार्मिक पुस्तक में रक्षाबंधन को लेकर एक कथा भी है। इस कथा के अनुसार राजा महापद्म ने अपने राज्य हस्तिनापुर का त्याग कर दिया और वैराग्य धारण कर लिया था। उन्होंने अपना राज्य अपने बड़े पुत्र पद्मराज को सौंप दिया था। महापद्म के साथ उनका छोटा पुत्र भी मोक्ष प्राप्ति के लिए चला गया।
वहीं दूसरी और उज्जैन नगरी में राजा श्रीवर्मा, मंत्री बलि नमुचि, बृहस्पति और प्रहलाद सभी जैने धर्म के दुश्मन थे। एक बार अकंपनाचार्य मुनि और उनके सभी 700 शिष्य उज्जैनी नगरी में पधारे। वे सभी लोग नगर के बाहर उद्यान में ठहरे हुए थे। जब अकंपनाचार्य मुनि को यह ज्ञात हुआ कि वह वे चारों मंत्री अभिमानी है और जैन धर्म का विरोध करने वालों मे से है। तो उन्होंने अपने शिष्य को आज्ञा देकर मौन धारण करने के लिए कहा और यह भी कहा कि जब तक राजा नही आ जाएंगे वे सभी मौन ही धारण करे रहेंगे। अपने गुरु की आज्ञा पाकर सभी ने गुरु आज्ञा का पालन शुरु कर दिया। उस समय श्रुतसागर नामक मुनि वहां मौजूद नही थे। जब राजा अपने मंत्रियों सहित आचार्य के दर्शन के लिए आए तो सभी मौन थे।जिसके बाद मंत्री ने राजा से कहा कि इन्हें ज्ञान प्राप्त नही है। इसलिए ये नहीं बोल रहे और मंत्रीयों ने मुनि और उनके शिष्यों को अपशब्द कहना शुरु कर दिया। श्रुतसागर मुनि को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने मंत्रियों को शास्त्रार्थ करने की चनौती दी। सभी मंत्री शास्त्रार्थ में पराजित हो गए थे। जिसके बाद सभी मंत्री वहां से चुपचाप चले गए। जब श्रुतसागर मुनि ने सारी बात अपने गुरु को बताई तो उन्होंने आचार्य को जंगल में तपस्या करने के लिए कहा। राजा के मंत्री आचार्य से इतना नाराज थे कि मौका पाकर उन्होंने श्रुतसागर मुनि पर हमला कर दिया।मंत्रीयों ने जैसे ही मुनि को मारने के लिए तलवार उठाई वनदेव ने आकर उन्हें जड़ कर दिया।

राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने मंत्रियों को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। जिसके बाद चारों मंत्री हस्तिनापुर पहुंच गए और राजा पद्मराय से मदद मांगने लगे। राजा ने उनकी योग्यता के कारण उन्हें उच्च पद दे दिया। उन्हीं में से एक मंत्री बलि ने अपने छल से राजा को एक विद्रोही राजा को उसके आधाीन करवा दिया। जिसके बाद राजा ने बलि से कुछ मांगने के लिए कहा।बलि ने राजा से कहा कि वह समय आने पर वर मागेगा। कुछ समय के बाद अकंपनाचार्य मुनि ससंघ हस्तिनापुर पधारे।राजा पद्मरा  अनन्य जैन भक्त थे। जब बलि को इस बात का पता चला तो उसने बदला लेने की ठानी। इसके बाद उसने राजा से वर मांगा। वर में उसने राजा से सात दिनों के लिए राजा बनने की इच्छा प्रकट की। जिसके बाद बलि ने अपनी चाल चली। जिस स्थल पर मुनि संघ ठहरा था वहां चारों ओर कांटेदार बागड़ बंधवा कर उसे नरमेध यज्ञ का नाम दे वहां जानवरों के रोम, हड्डी, मांस, चमड़ा आदि होम में डालकर यज्ञ किया। मुनि उस दूषित वायु से अत्यंत परेशान होने लगे। जिसके बाद सभी मुनि समाधि में चले गए।उनकी यह दशा देखकर सभी नगरवासीयों ने भी अन्न जल का त्याग कर दिया। उधर मिथिलापुर नगर के वन में विराजित सागरचंद्र नामक आचार्य ने अवधि ज्ञान से मुनियों पर हो रहे इस उपसर्ग को जान अपने शिष्य पुष्पदंत को कहा तु आकाशगामी हो जाओ और धरणीभूषण पर्वत पर विष्णुकुमार मुनि से इस उपसर्ग को दूर करने का विनय करो। वे विक्रिया ऋद्धि प्राप्त कर चुके हैं। क्षुल्लक पुष्पदंत की आज्ञा पाकर पर्वत पर पहुंचा और विष्णु कुमार को सारा वृतांत सुनाया। विष्णुकुमार मुनि तुरंत ही हस्तिनापुर की और चल पड़े।हस्तिनापुर आकर विष्णुकुमार ने पद्मराय को धिक्कारा और पूरी बात बताई। इसके बाद विष्णुकुमार ने 52 अंगुल का शरीर बनाया और बलि के पास पहुंचे। जब बलि ने उनके आने का कारण पूछा तो उन्होंने बलि से तीन डग धरती मांगी। मुनि ने अपनी शक्ति का प्रयोग करके अपने शरीर को बड़ा कर लिया और दो ही डग में सुमेरू पर्वत को नाप लिया मानुषोत्तर पर्वत को नाप लिया। जब तीसरे डग की बारी आई तो बलि ने अपनी पीठ आगे कर दी। मुनि के डग से बलि का शरीर कांपने लगा। इसके बाद बलि ने मुनि से श्रमा मांगी। मुनि ने अपना चरण उसकी पीठ पर से हटा दिया और अपने असली रूप में आए। इसके बाद सभी नगरवासियों ने सभी मुनियों की सेवा करके उनको चैतन्य अवस्था में लेकर आए। यह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का ही दिन था। जब मुनियों की रक्षा हुई थी। इस दिन की याद में लोगों ने हाथ में सूत का धागा लपेटा था।आज भी लोग इस दिन घरों में खीर बनाते हैं और विष्णु कुमार की पूजा और कथा सुनते हैं।

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