शनिवार , अप्रेल 27 2024 | 04:24:23 PM
Breaking News
Home / धर्म समाज / जैन धर्म – रात में भोजन करने की है मनाही, चातुर्मास में होते हैं और भी कड़े नियम

जैन धर्म – रात में भोजन करने की है मनाही, चातुर्मास में होते हैं और भी कड़े नियम

Tina surana, जयपुर। जैन धर्म अहिंसा प्रधान है। इस धर्म का सारा जोर हिंसा रोकने पर है। वह चाहे किसी भी रूप में, किसी भी तरह की हिंसा क्यों न हो। रात्रि भोजन के त्याग के पीछे अहिंसा और स्वास्थ्य दो प्रमुख कारण हैं। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि रात्रि में सूक्ष्म जीव बड़ी मात्रा में फैल जाते हैं। ऐसे में सूर्यास्त के बाद खाना बनाने और खाने से सूक्ष्म जीव भोजन में प्रवेश कर जाते हैं। खाना खाने पर ये सभी जीव पेट में चले जाते हैं। जैन धारणा में इसे हिंसा माना गया है। इसी कारण रात के भोजन को जैन धर्म में निषेध माना गया है।

रात्रि पूर्व भोजन स्वास्थ्य के लिए भी है फायदेमंद
इसका एक कारण पाचन तंत्र से भी जुड़ा है। सूर्यास्त के बाद हमारी पाचन शक्ति मंद पड़ जाती है। इसलिए खाना सूर्यास्त से पहले खाने की परंपरा जैन धर्म के अलावा हिंदू धर्म में भी है। यह भी कहा जाता है कि हमारा पाचन तंत्र कमल के समान होता है। जिसकी तुलना ब्रह्म कमल से की गई है। प्राकृतिक सिद्धांत है कि सूर्य उदय के साथ कमल खिलता है और अस्त होने के साथ बंद हो जाता है। इसी तरह पाचन तंत्र भी सूर्य की रोशनी में खुला रहता है और अस्त होने पर बंद हो जाता है। ऐसे में यदि हम रात में भोजन ग्रहण करें तो बंद कमल के बाहर ही सारा अन्न बिखर जाता है। वह पाचन तंत्र में समा ही नहीं पाता। इसलिए शरीर को भोजन से जो ऊर्जा मिलनी चाहिए, वह नहीं मिलती और भोजन नष्ट हो जाता है।

जैन धर्म में चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास पर्व यानि चार महीने का पर्व जैन धर्म का एक अहम पर्व होता है। इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा पाठ किया जाता है। वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास पर्व मनाया जाता है। जैन धर्म के अनुसार बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते वे सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-उठने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। इस दौरान जैन साधु एक जगह रहकर तप और स्वाध्याय करते हैं एवं अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व मनाया जाता  है। मान्यता है कि जो जैन अनुयायी वर्ष भर जैन धर्म की विशेष परंपराओं का पालन नहीं कर पाते वे इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं।

जैन प्रवचनकार पं अंकुर शास्त्री के अनुसार चातुर्मास में जैन धर्म के अन्य नियम

  • चातुर्मास में सभी भौतिक सुख-सविधाओं का त्याग कर के संयमित जीवन बीताया जाता है।
  • इन 4 महीनों में सफाई और जीव हत्या से बचते हुए सिर्फ घर पर बना भोजन
    ही किया जाता है।
  • पंखा, कूलर और अन्य सुख-सुविधाओं के साधनों के साथ ही टीवी और मनोरंजन
    की चीजों से दूरी बना ली जाती है।
  • इन दिनों में स्वयं के लिए कपड़े और ज्वैलरी नहीं खरीदी जाती।
  • इन 4 महीनों में गुस्सा, ईर्ष्या, अभिमान जैसे भावनात्मक विकारों से
    बचने की कोशिश की जाती है।
  • एक ही समय भोजन किया जाता है और ज्यादा से ज्यादा मौन रहने की कोशिश की जाती है।
  • हरी सब्जियां इन चार महीनों में हरी सब्जियां और कंदमूल नहीं खाए जाते हैं।

Check Also

Additional budget provision of Rs 44 crore for Senior Citizen Pilgrimage Scheme

वरिष्ठ नागरिक तीर्थ यात्रा योजना में 44 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बजट प्रावधान

जयपुर। राज्य सरकार वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थ स्थलों की यात्रा कराने के लिए संकल्पित है। …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *